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|संग्रह=जूझती जूण / मोहम्मद सद्दीक
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<poem>
सूनै-सूनै पींजरै रा
खाली-खाली खण है
भोळै-भोळै चैरां माथै
दुखड़ां रा बण है।
घूघरां में गूंज कोनी
कोरी भण-भण है
बांझड़ी ने बेटा अर
हींजड़ां रा गण है। सूनै-सूनै......

आसा री उडार म्हारी
आकासां में छा‘री है।
माड़ी नींत आदमी री
आदमी नै खा‘री है।
जागै जाणै फींफरां में
सुती जम्मी जा‘री है।
भूवा जी मल्लार म्हारे
आंगणां में गा‘री है।
रोजीना रामाण अठै
पग-पग रण है
बोलै जिकै मूंडै माथै
मोटा-मोटा घण है। सूनैै-सूनै....
काचरो है - कातरो रे
ध्यान राख घात रो
फाड़ देवै दूध ओ तो
आदमी री जात रो
थोड़ो घणो मोल करै
सामलै री लात रो
बाजरी रा सिट्टा कोनी
सांपला रा फण है। सूनै-सूनै....

धोळी-धोळी बातां बिच्चै
काळा-काळा तिल है।
काळजै री ठौड़ आंरै
खाटू हाळी सिल है।
सेरां हाली धरती माथै
सांपलां रा बिल है।
कीड़ी नै तो कण कोनी
हाथीड़ां नै मण है।
कामधेनु कोनी ईंरा
खाली-खाली थण है। सूनै-सूनै...

</poem>
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