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|संग्रह=जूझती जूण / मोहम्मद सद्दीक
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<poem>
मन रै मानसरोवर मांही
बैठ्यो हंसो पांख पसार
मोती चुगस्यां इमरत पीस्यां
इण आसा नै मन में धार।।
बिगत बिसारी अबरी सारी
बात ध्यान में आयो यार
नाव न्याय री डूबण लागी
मिनख जूण स्यूं लोप्यो प्यार
छोटी छोटी मच्छल्यां लारै
मोटा मोटो माणसमार
अरै बचाल्यो अरै बचाल्यो
थारो म्हारो भेद बिसार
नाव डूबियां सै डूबांला
डूबां ला म्है काळी धार
सुख संचै कद धरा धिराणी
इण री माया अपरम पार।।
</poem>
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