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|संग्रह=जूझती जूण / मोहम्मद सद्दीक
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<poem>
उडजा‘ कसूम्बा काळा काग
संवारूं थारी पांखडली
मैं तो जोऊं रे जुलमीड़ा थारी बाट
बैरागण बासो जोय रई।।

झुरझुर रोवै नार सांवळी
पिवजी नै दीजै बताय
बिना धणी रै धण है सूनी
सैजां नाईं सुवाय
आवै नईं म्हानै नींदडली रे।।

दौड़ कसूम्बा सुणा संदेसो
पिवजी रै आवण रो
कद आवैला कद ल्यावैला
म्हारी पायलड़ी
आवै नई म्हानै नींदड़ली रे।।

तीज सुहाणी आई रे साजना
रूत आईं फळ होय
बिना सार चम्पै री डाळी
किणबिद ताजी होय
देवै रै ताना साथड़ली रे।।

काग उडाया सुगन मनाया
काज सर्यो नईं राज
लाड-लडावणियां घर आवो
रस भीजूं सारी रात
थारी मीठी लागै बातड़ली रे।।

उड़जा कसूम्बा काळा काग
संवारूं थारी पांखडली।।
</poem>
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