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सोरठा / मोहम्मद सद्दीक

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<poem>
आळस पर असवार
काळै कोसां पूगणो
कायर हाथ कटार
पाणी लाजै सादिया।।

मोथा मिलै हजार
माथा मिलसी भाळियां
बिकसी हाट बजार
कीडी सट्टे सादिया।।

मूंढै ऊपर मूंछ
मरदानी बातां करै
लारै ओछी पूंछ
अलख बछैरी सादिया।।

सतजुग री है दैण
जीवन जळ रो पीवणो
लूंठै घर री सैण
घणा अरोगै सादिया।।

मांदा पड़सी लोग
औसद घर में होवतां
जीवन जळ रो भोग!
रोग! रैवै नईं सादिया।।

बीजो बात विचार
खेतां पनप्यो कातरो
जीवन जळ री धार
बेगो रळसी रेत में।।

भाग्यां छूटै लार
बिन भाग्यां पूगै नईं
मोड़ो करसी मार
पूग्यां सरसी सादिया।।

भाग्या तत्ता तोड़
चाल्या कोनी एक डग
अणगिणती रा मोड़
इण जीवन में सादिया।।

अणजाणी सी ठौड़
चालां अळगा आंतरा
बसती होगी खोड़
मिनख मिलेनी सादिया।।

मत कर जाण पिछाण
इण स्यूं पीड़ा ऊपजै
जाणीकार अणजाण
सोरी कटसी सादिया।।

आम्बै हाळी ठौड़
ऊग्या क्यूं अकडोडिया
बसती होगी खोड़
अड़वा होग्या आदमी।।

कूवै थमयां भूण
मोसम लेसी माजनो
सांभर में सो लूण
पाणी चाख्यां ठा पड़ै।।

कीमत करसी कूण
अवगुण सामा आवियां
गुण होसी सी जूण
दीवळ खायै ठूंठ री।।

अणचायजतो जीव
क्यूं जलमें क्यूं पांगरै
दुख दाळद नै पीव
पोचो पड़सी जीवड़ा।।

ज्ञानी सुणसी गीत
साजन सुणसी सोरठा
हिवड़ै पनपै प्रीत
बैरी पढ़सी मरसिया।।

चम्चेड़ां रो राज
नाक बचाणी आपरी
कठ्ठै जावां भाज
उल्लू ताकै ऊंदरा।।
</poem>
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