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<poem>
पड़ सूं डरयोड़ा म्है तो पाडिये पर चढ़िया
पाडिये पटक्किया पड़ माथै
सूरज उगाळी म्है तो भागण लाग्या
गुड़तां-पड़तां दिन आंथै।
आंख्यां में उडीक, आंसू, पीड़ घणा पचिया
आळै में उदास बैठ्या भोळा-भोळा बचिया
आभै री अणूत बिना कूंत नित बरसै
इस्या चितराम रातो रात कुण रचिया
परबीती बात रो घर घर चरचो
घर बीती बात नै कुण बांचै।

चिन्ता रो चितैरो जठै च्यानणै सूं डरग्यो
आस रो उजास उठै घर में पसरग्यो
जुलमी
अकाळ काच कूंपळां नै कुतरै
मानखो निमाणो देख हियो म्हारो भरग्यो
मंगसो उदास म्हारो दिन घणो फीको
मनड़ै रो मोर म्हारो कद नाचै।
किलबिल किलबिल कंवळा आखर
आंगणियै में आस लियां
लाज लजीली भोळी ममता
सौ-सौ मोती राळ दिया
काळी-काळी रात रो काळो-काळो कळमस
जग जाणै-पण कुण जांचै।

भोळा-भोळा गीत म्हारी भोळी भोळी बात है
दिन जिस्या दिन अर रात जिस्सी रात है
गण्डकां नै गिरजां नै सूंप दिया मानवी
कोढ़ भेळी खाज आज खूनी बरसात है
चेतो कर जाग अब आंख थोड़ी खोल दै
टूट जासी डोर घणी मत खांचै।
</poem>
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