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<poem>
सुळ सुळियो पड़ग्यो रै म्हारा बापू
घर कै मुट्ठी धान में
मिनख जूण जद डोका चरसी
माटी रळसी मान में।

फिरै टसकता भूखां मरता
माटी हाळा जीव रै
जोबन बिकतो फिरै बजारां
मिनख पणै री सींव रै
कुण कुचमादी राख रळा दी
मकराणै री खाण में।

धान धिणापो पड़ग्यो पासै
धींगा मस्ती छाई है
मिनख मिनख रो बैरी बणग्यो
आछी आफत आई है
कुण रोकै सुधै सांपां नै
बड़तां टूटी छान में।

जुग-सतरंगी सतरंज माथै
म्है बिछियोड़ा मो‘रा हां
चाल चालणी कोनी आवै
घणा मना में दो‘रा हां
आंधी आंख अकलरी फूटी
कीड़ी बड़गी कान में

खुळगी नीवां सगळै घर री
थोथ बापरी ठोड़ा ठोड़
कद आवैली रूत रोटी री
लोग भागरया तत्ता तोड़
घणा जणा तो सो‘रा होग्या
रोटी मिलसी दान में।।

कठै बिनणी कठै सासरो
कोड कोडाया जावैला-
भैळी करली भूख भीड़ में
भाषण घणा चबावै ला
बैंड बजाता गया बराती
बिना बींद री जान में।
</poem>
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