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<poem>
चरभर में लाग्या दूभरिया
सब डूबै कुण उभरिया रै
माटी रा माणक मांदां है
इस्या करम थै क्यूं करिया।

मार पालथी नो घर रोक्या
और लगाली दूण-
गट, गट गिटगी सगळी गोट्यां
काळो मूंडो हूण
थारो काळो मूंडो हूण
मतना देवो दोस भायला
जीणो। तो मरिया।

धरा बिलखती रोती दीसै
रोहीड़ै रा फूल
क्यूं धिसक्यो धरती रो धीरज
पाणी री पत भूल
काळ चाबसी मिनख मोकळा
तूं भी तो चरिया।
</poem>
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