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|रचनाकार=मानसिंह राठौड़
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<poem>
उतरे फागण चेतर आवै,
चहुँदिश लूवां चालै ।
अखातीज जद नेड़ी आवै,
गरमी घूमर घालै ।।
कूलर पंखा ब्हारै काढ़ो,
पीड़ जागगी पाछी।
तावड़ियो हद जोर तपै है,
एसी लेल्यो आछी।।
मास आषाढ़ बरसै मेघा,
हळिया मन हरखावै ।
बीज भात अर लीना बोरा,
जोत खेत नैं जावै ।।
मीठा मीठा बोलै मोर्'या,
प्रीत घणी पसरावै।
हरदम रेवै है हरियाळी,
गीत गवाळिया गावै ।।
बाजर मोठ मतीरा व्हाया,
लूंठी फसलां लीनी ।
जगमग जगमग दीप जळाया,
दौड़ बधायां दीनी ।।
दिवाळी रा चमक्या दीवा,
अबै सियाळो आवै ।
नाकां री व्है नाकाबंदी,
धड़धड़ डील धुजावै ।।
मफलर कांबळ मूंडा माथै,
चा री चुसकी चावै ।
खीर पुड़ी अर कढ़ी पकोड़ा,
गरम गरम गटकावै ।
</poem>
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उतरे फागण चेतर आवै,
चहुँदिश लूवां चालै ।
अखातीज जद नेड़ी आवै,
गरमी घूमर घालै ।।
कूलर पंखा ब्हारै काढ़ो,
पीड़ जागगी पाछी।
तावड़ियो हद जोर तपै है,
एसी लेल्यो आछी।।
मास आषाढ़ बरसै मेघा,
हळिया मन हरखावै ।
बीज भात अर लीना बोरा,
जोत खेत नैं जावै ।।
मीठा मीठा बोलै मोर्'या,
प्रीत घणी पसरावै।
हरदम रेवै है हरियाळी,
गीत गवाळिया गावै ।।
बाजर मोठ मतीरा व्हाया,
लूंठी फसलां लीनी ।
जगमग जगमग दीप जळाया,
दौड़ बधायां दीनी ।।
दिवाळी रा चमक्या दीवा,
अबै सियाळो आवै ।
नाकां री व्है नाकाबंदी,
धड़धड़ डील धुजावै ।।
मफलर कांबळ मूंडा माथै,
चा री चुसकी चावै ।
खीर पुड़ी अर कढ़ी पकोड़ा,
गरम गरम गटकावै ।
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