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{{KKRachna
|रचनाकार=राजेराम भारद्वाज
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<poem>
मिलके गल काटण आले का, हाँ भरकै नाटण आले का।।
दरगाह मै मुँह काला हो ।। टेक ।।

मात पिता गऊ गुरु ब्राह्मण, सन्तों से बैर लगावै जो,
पहर चाम के जूत ऊत, अग्नि कै पैर लगावै जो,
कैर लगावै आम कटादे, पापी कूप तलाब अटा दे,
फुड़वादे गऊशाला हो।।

मीत महीपति को माहुर दे, मित्र बणके घात करै,
उर के अन्दर कपट भर् या, हो मुख से मिठ्ठी बात करै,
गर्भपात करै नीच देख, डूबै मझधारा बीच देख,
सठ अग्नि लाणे वाला हो।।

बेटी बेच व्यवहार चलावै, लेकै ब्याज बनै बोहरा,
हाट हवेली महल चौबारे, बनवाले बैठक नोहरा,
ना घर धोहरा उस अन्यायी को, मारै खुद अपनी ब्याही को,
वो इन सब का साला हो।।

शंकर दास गुरु कृपा से, कट ज्याते भव भय बन्धन,
केशवराम कहैं शुभ सत्संग से, कूट वृक्ष भी हों चन्दन,
कुन्दन लाल नहीँ डर सकता, उसका दुश्मन क्या कर सकता,
जिसका राम रूखाला हो।।
</poem>
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