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{{KKRachna
|रचनाकार=पंकज चौधरी
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|संग्रह=
}}
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<poem>
लड़ो
क्योंकि लोगों ने लड़ना छोड़ दिया है
लड़ो
क्योंकि बगैर लड़े कुछ नहीं मिलता
लड़ो
क्योंकि बगैर लड़े घुट-घुटकर जीना पड़ता है
लड़ो
क्योंकि अभी तक तुम्हें जो कुछ भी मिला है
लड़कर ही मिला है
लड़ो
क्योंकि लड़ने वाले का इंतजार होता है
लड़ो
क्योंकि नहीं लड़ने से ही जंगलराज कायम होता है
लड़ो
क्योंकि बगैर लड़े इंसान पिट्ठू बन जाता है
लड़ो
क्योंकि जो लड़ेगा वही बचेगा
लड़ो
क्योंकि बगैर लड़े
इंसान को अंधा, बहरा, गूंगा और लूला माना जाता है
लड़ो
क्योंकि नहीं लड़ोगे तो लोग तुम्हें खा लेंगे
लड़ो
क्योंकि बगैर लड़े अग्नि स्वर्ग से पृथ्वी पर नहीं लाई जाती
लड़ो
क्योंकि तुम्हारे पास खोने के लिए कुछ भी नहीं
लड़ो
क्योंकि पाने के लिए ही तुम्हारे पास सारा जहान है।
</poem>
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|संग्रह=
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लड़ो
क्योंकि लोगों ने लड़ना छोड़ दिया है
लड़ो
क्योंकि बगैर लड़े कुछ नहीं मिलता
लड़ो
क्योंकि बगैर लड़े घुट-घुटकर जीना पड़ता है
लड़ो
क्योंकि अभी तक तुम्हें जो कुछ भी मिला है
लड़कर ही मिला है
लड़ो
क्योंकि लड़ने वाले का इंतजार होता है
लड़ो
क्योंकि नहीं लड़ने से ही जंगलराज कायम होता है
लड़ो
क्योंकि बगैर लड़े इंसान पिट्ठू बन जाता है
लड़ो
क्योंकि जो लड़ेगा वही बचेगा
लड़ो
क्योंकि बगैर लड़े
इंसान को अंधा, बहरा, गूंगा और लूला माना जाता है
लड़ो
क्योंकि नहीं लड़ोगे तो लोग तुम्हें खा लेंगे
लड़ो
क्योंकि बगैर लड़े अग्नि स्वर्ग से पृथ्वी पर नहीं लाई जाती
लड़ो
क्योंकि तुम्हारे पास खोने के लिए कुछ भी नहीं
लड़ो
क्योंकि पाने के लिए ही तुम्हारे पास सारा जहान है।
</poem>