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|रचनाकार=पंकज चौधरी
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|संग्रह=
}}
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<poem>
क्रिमिनल है तो क्या हुआ
अपनी जाति का है
दंगाई है तो क्या हुआ
अपनी जाति का है
खूनी है तो क्या हुआ
अपनी जाति का है
सर पर मूतता है तो क्या हुआ
अपनी जाति का है
बस्तियां फूंकता है तो क्या हुआ
अपनी जाति का है
बलात्कारी है तो क्या हुआ
अपनी जाति का है
गरिबों को रुलाता है तो क्या हुआ
अपनी जाति का है
अपनी जाति का है तो सात खून माफ़ हुआ
औरों की जाति का है तो निरपराधी भी साफ़ हुआ।
</poem>
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क्रिमिनल है तो क्या हुआ
अपनी जाति का है
दंगाई है तो क्या हुआ
अपनी जाति का है
खूनी है तो क्या हुआ
अपनी जाति का है
सर पर मूतता है तो क्या हुआ
अपनी जाति का है
बस्तियां फूंकता है तो क्या हुआ
अपनी जाति का है
बलात्कारी है तो क्या हुआ
अपनी जाति का है
गरिबों को रुलाता है तो क्या हुआ
अपनी जाति का है
अपनी जाति का है तो सात खून माफ़ हुआ
औरों की जाति का है तो निरपराधी भी साफ़ हुआ।
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