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|रचनाकार=गन्धर्व कवि पंडित नन्दलाल
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<poem>
'''करुणा कर कृष्ण कृपालु, कृपा कर भगवान तुही,'''
'''दीनानाथ दयाल दयानिधि, दामोदर भगवान तुही ।। टेक ।।'''

अलख अगोचर अंतरयामी, असुरों को मारन वाले,
गुण गावुं गोविन्द गरुङगामी, गिरिवर धारन वाले।
खलदल मैं खलबली मची, खरदुषण संहारन वाले,
भीङ पङी मैं भगवत, भय भक्तों के टारण वाले,
ताराण वाले भार मही का, सारंगधर भगवान तुही ।।

पारब्रह्म परिपूर्ण परमेश्वर, प्रभु पल में क्या कर दे,
भगवत भय भक्तों के हरते, भरे रीता रीते भर दे,
रमे रोम रोम मैं राम रमापति, पक्षी को कर बिन पर दे,
त्रीभुवनपति त्रीण सदर्श, भर तेज ताज सिर पर धर दे,
सिर दे उङा शेर का, लावे ना पल भर भी भगवान तुही ।।

मारे से मरता ना, मारुं चंचल झुन्ठे मन को,
तृष्णा ताण रही ताणा सा, त्रास तराश देती तन को,
त्रय ताप की तप्त तपाती, जिमि वन्हीर कंचन को,
निधि व्याशन भासन आसान, जाणु ना कोई साधन को.
जन को जान अनजान अधर्मी, सर्व अघ हर भगवान तुही ।।

वराह बने वनपति वामन, कच्छ मतस्य कभी कर देई,
आपो नारा इति-परोक्ता, अरु नारायन धर देई,
निराकार निर्दोश निरंजन, अव्यक्त त्वेम्जा मरते ही,
नागर नट झट प्रकट हो, धारन करते ह्रदय ही,
नर देही धर नन्दलाल हुये, नन्द के घर भगवान तुही ।।
</poem>
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