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|रचनाकार=गन्धर्व कवि प. नन्दलाल
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<poem>
'''सांग:- द्रोपदी स्वयंवर (अनुक्रमांक-2)'''

'''वार्ता:-'''
जब राजा द्रोपद अपमान-जनक शब्द सभी राजाओं को कह रहे थे तब मद्रदेश का राजा शल्य खड़ा होता है और राजा को क्या कहता है?

'''एक बार फळ पाक लिये, ना फेर पाकैं सैं,'''
'''इन गीदड़ों की तावळ मैं, के बेर पाकैं सैं।। टेक ।।'''

प्रजा का बर्ताव खुशी हो ब्याह के साहवे मैं,
बणै पाटड़ा फेर आँट खुलज्या मुकलावे मैं,
परमेश्वर नैं सूळ करी पैदा सेह झाहवे मैं,
मिट्टी मथै कुम्हार त्यार हों बर्तन आहवे मैं,
पजावे मैं ईंटां के ढेर के ढ़ेर पाकैं सैं ।1।

होज्या सर्द शरीर खुशी मन शब्द सुणै ठण्डे,
कविताई मैं रस भर दें कवियों के हथकण्डे,
ऐसा रस मालुम हो जाणु चूस लिये गण्डे,
हाँसी और मजाक मशकरी करज्यां मसटण्डे,
दे मुर्गी अण्डे सुण मुर्गे की टेर पाकैं सैं ।2।

भूण्ड मगन रहै मल मैं भंवरा बाग बीच मैं हो,
पन्चानन कानन मैं मीन तड़ाग बीच मैं हो,
बेरा ना के लिख राखी इस भाग बीच मैं हो,
शीप बीच मैं मोती मुक्ता नाग बीच मैं हो,
आग बीच मैं काच्ची वस्तु गेर पाकै सैं ।3।

मूर्ख धक्के खाते रहते भूल भ्रम के जी,
लिखे लेख ना मिट सकते सही कर्म के जी,
केशोराम उपासक हैं सच्चे पारब्रह्म के जी,
कुन्दनलाल गुरु कहते हैं बोल मरम के जी,
नंदलाल धर्म के फल मीठे लगैं देर पाकैं सैं ।4।

'''दौड़:-'''
कहै शल्य मेरा देख बल मै नदियों का जल भी देऊं सूखा,
रणधीर वीर ले लिया तीर फूल रह्या शरीर बल नहीं समा,
पाजी मन मैं हो रह्या राजी खर का ताजी बणता ना,

मामूली सी पैज रचाकैं क्युं इतणा गर्भाया,
महीपाल तनै बेरा ना मैं चलकर घर तैं आया,
तेरी पैज नै पूरी कर दयुं होज्या मन का चाया,

इतणा कहण पुगा दे राजा क्युं राखी सै देर लगा,
तुं तावळ करके जाइये घर नै पंडित नै लिए बुलवा,
सामग्री कट्ठी करकैं फेरां का ले लग्न दिखा,
बाण मार दुं मीन तार दुं लड़की नै ल्युंगा प्रणा,

मादरदेशी कहण लग्या था सब राजां नैं सुणा-सुणा,
जै कोय जीमण का भूखा हो तो बेशक डटो प्रीति ला,
जै कोय देखै बाट बहु की तो पहले ले लो घर का राह,
या तो माँग मेरी सै भाई मैं ले ज्यां इसनै प्रणा,

इतणी सुणकैं कई कई न्यूं आपस मैं बतळाया,
मरा बैटा यो ब्याह कैं लेज्या न्यूं ऐ घर तैं आया,
कई कई न्यूं कहरे थे म्हारै कुछ ना थ्याया,

भले आदमी न्यूं कहरे थे आपस मैं रहे जिकर चला,
देख पैज नै पूरी करदे यो लड़की नैं लेज्या प्रणा,
तो घरां जाण जोगे होज्यांगे या दुनियादारी कहगी क्या,

मादरदेशी खङ्या होया था धनुष बाण कै धोरै जा,
इष्टदेव का स्मरण करकैं बाण भुजा मैं लिया ठा,
इस तरीयां तैं भाल चढ़ावै राजा बैठे करैं निंगाह,
एक,दो,तीन,चार,पांच,सात,दश दई पुगा,
पंद्रह,सोळह चढ़ी अठारह वै आधी भाल तो दई चढ़ा,

फेर बाण नैं जोर दिया था,अधर होण लाग्ये न्यूं पाँ,
मादरदेशी सोचण लाग्या दिल मैं रह्या हिसाब लगा,
देख बाण का नहीं भरोसा किस्मत पै पड़ज्या भाठा,
कुणबै सेती मरुं बिछड़कैं या चोखी लई बिंदणी ब्याह,
इतणै मैं के कारण हो भई गोळा पड्या गैब का आ,
वो बाण भुजा तैं छूट गया,अरमान भूप का टूट गया,
भ्रम सभा मैं फूट गया,एकदम पङ्या तिवाळा खा,

दस हजार राजा हाँसे मुख आगै लिया पल्ला ला,
वा मर्दाना रह्या ना छान्ना सही निशाना दिया लगा,

गिर गया था भूप जिसनै आ गया तिवाळा देखो,
राजा सब हांसण लागे पटग्या पटग्या चाळा देखो,
धूळ मैं मिल्या था मुख टूट गई माळा देखो,

कई कई न्यूं कहरे थे आपस मैं जिकर चला,
वाह रै छत्रधारी,तनै चोखी मीन उतारी,
सभा कहै रही सारी,होगी थी लाचारी,
पल पल मुश्किल भारी,धोखे धर कैं पछता,

मादरदेशी कहण लग्या था सब राजां नैं सुणा सुणा,
ईब तलक थी माँग मेरी मै राख्या था जोर जमा,
मैं तो दावा छोड़ दिया और दूसरा ल्यो कोय ब्याह,

खङ्या होया चाल पङ्या तंबू अंदर आया देखो,
जाण बूझ ये भ्रम सभा मैं गवांया देखो,
किसे का ना दोष फिरगी परमेश्वर की माया देखो,
कुंदनलाल नंदलाल महाभारत गाया देखो,
श्री बेगराज हाथ शिश पै टिकाया देखो ।5।
</poem>
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