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<poem>
'''सांग:- द्रोपदी स्वयंवर (अनुक्रमांक-3)'''

'''वार्ता:'''
राजा शल्य द्रौपदी की सुन्दरता का वर्णन सभा में कैसे करता है।

गरजण लागे मादरदेशी, मतन्या बात बणाओ ऐसी,
राणी नहीं द्रौपदी कैसी,चाहे टोहल्यो तीनों लोक मैं ।। टेक ।।

मनै देखी धरकैं ध्यान, बोल रही कोयल की सी जबान,
चाबै पान लगावै मिस्सी,मोती के सम खिली बत्तीसी,
भरी धरी शरबत की सी शिशी,पी ल्युं करके ओक मैं।

मूषक ना जीतै उर्ग अरी को,पंचानन दे मार करी को,
मूर्ख हरी को नहीं रटैगा,नूगरा कहके तुरन्त नटैगा,
टिब्बी पै जल नहीं डटैगा,पाणी ठहरै झोक मैं।

हुस्न मैं हो रहे घणे कमाल,चाल रही हथणी कैसी चाल,
शेर स्याल का मंडग्या पाळा,सहम ज्यान का होग्या गाळा,
रूप का होया ईसा उजाळा,जणु आग बाळ दी चोक मैं।

देख लिया मनै परी का ढंग,भर रही या दिल के बीच उमंग,
सतसंग सै बड़े भाई का,शरणा है दुर्गे माई का,
बेरा ना कविताई का,पर नोक मिला दी नोक मैं।
</poem>
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