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<poem>
सांग:- द्रोपदी स्वयंवर (अनुक्रमांक-5)

'''दिलदार यार के मिले बिना, पलभर ना चैन पड़ै ।। टेक ।।'''

सविता देख सरोज खिलै रवि छुपै कमल हो बंद,
अली सच्ची लगन मैं मरता भरता पड़ै प्रीत का फंद,
हो नहीं गंध कंज के खिले बिना खिलके नै जलज झड़ै।

चाहे ब्रह्मा गुरु बणा ल्यो पर महामुर्ख पढ़ता ना,
काटे पीछे वृक्ष सूकज्या आगे को फिर बढ़ता ना,
चढ़ता ना डोरी हिले बिना डोरी से पतंग लड़ै।

मन बस कर पकड़ो कसकर लड़ी लटकती हिम्मत की,
या गठड़ी दूर टिकादे लोक लाज कुल इज्जत की,
सत की सूई से सिले बिना यो मिलै कभी बिछड़ै।

केशोराम काळ खा ज्या गये शंकरदास बता,
कुंदनलाल न्यू कहते प्रभु करीयो माफ खता,
पता पोस्ट नाम घर जिले बिना खत जा नंदलाल कड़ै।
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