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बाढ़ का पानी / भावना कुँअर

613 bytes added, 22:44, 10 जुलाई 2018
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बाढ़ का पानी फैला चारों ही ओरडूब गए हैंसारे ही ओर छोर।जाने कितनेटूटकर बिखरेघर,सपने।और बिछुड़ गएपलभर मेंकितनों के अपने।प्रकृति कैसे खेल रही है खेलकहीं है सूखाकहीं बाढ़ का पानीक्यों कर करेअपनी मनमानी।मची है कैसीये अज़ब तबाही।
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