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अप्रभावित / महेन्द्र भटनागर

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महा शिवतीर्थ हूँ<br>
अपने समय का मैं ! <br><br>
......-......
(47) आत्म-निरीक्षण
 
जीवन भर<br>
कुछ भी<br>
अच्छा नहीं किया ! <br>
ऐसे तो<br>
जी लेते हैं सब, <br>
कुछ भी लोकोत्तर<br>
जीवन नहीं जिया ! <br>
अपने में ही<br>
रहा रमा, <br>
हे सृष्टा ! <br>
करना सदय क्षमा ! <br><br>