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|संग्रह=सावण फागण / लक्ष्मीनारायण रंगा
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<poem>
उतर रियो हर चीज रो पाणीं
कांई न बची अब ओळखांणी

कोयला सैंग मकराणा बणग्या
काळै-धोळै री नीं पैछाणीं

ऊंचां मै‘लां लड़ै सिंघासण
करै जनता री कुण निगराणी

सै निजारा दिखै धूंधळा
आंख्या चांदी पाट्यां-ताणीं

मिलै न्याव नै फांसी हुकम
कलम इन्याव चालै तूफाणीं

आंधो इतिहास साहित्य गूंगो
बोळै जुगरी आ सैनाणी

होठां ठुकी सोने री मेखां
कुण कै‘वै दुखां री काणीं

जिका बिक्या बजारां बिचाळै
बोल सकै कठै बां में पाणीं
</poem>
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