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|संग्रह=सावण फागण / लक्ष्मीनारायण रंगा
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<poem>

अकास रै
ऊंचै हिमाळै माथै
आगै-आगै
जा री है
‘सैंणी’ सुन्दरी
बरफ सी घुळती
अन्तस री आग सूं

लारै लारै
उणनैं ढूंढतो
जारियो है
‘बींजो’
बिजोग रा गीत
गांवतो
गळतो-पिघळतो
</poem>
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