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|संग्रह=कद आवैला खरूंट ! / राजेन्द्र जोशी
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<poem>
बळणो चावतो
फकत साठां पछै
अगनी रै भेळो
आत्मा नै ई बाळण रा
कर्या जतन
नीं बळी आत्मा।

अगन साम्हीं ऊभी हुयगी
छटपटावतो हेलो करै
आत्मा नै
नीं सुणै उणरी बात
अगन रै नेड़ै ऊभी
मुळकती बंतळ करती
बा जाणै
बाळ नीं सकै उणनै अगन।

साठां पछै रो महाजुध
करणी चावै अेकर
उण सूं उणरी आत्मा
नीं बळण देवै उणनै आत्मा।
</poem>
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