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|संग्रह=कद आवैला खरूंट ! / राजेन्द्र जोशी
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<poem>
मिनखां भरी तिरेड़ां दीखै
गाल पिचकग्या, हाड्यां दीखै
किरसा री टांग्यां कांपै
डूब मरण री ठौड़ है कोनी।

किरसा तिरसा हुया अडाणै
अडाणै री आड में देख्यो
आडतियो भगवान बण्यो है
लागै गांव रो मालिक बण्यो है।

स्हैर घूमता गाड्यां चढता
लोग-लुगाई टाबर भणता
आडतियै रा ठाठ देखलो
पूजै किरसा हाथ जोड़ता।

बिरखा जियां बांध बैठाई
आडतियै रै घरां बैठगी
पट्टा सगळा जमा तिजोरी
हरख-कोड सूं तूंद बधावै
चतराई सूं बही बणावै
किरसा री बुद्धि नै हंसतो।

इंदर राजा मौज मनावो
इन्नै निजर इयां ई राख्या
आडतियै री स्यान बधावो
इंदर राजा, इंदर राजा...
</poem>
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