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|संग्रह=कद आवैला खरूंट ! / राजेन्द्र जोशी
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<poem>
बिरखा आई का कोनी आई
सवाल औ कोनी!
बिरखा कित्ती बरसी, थोड़ी कै घणी
सवाल औ भी कोनी।

बगत माथै नीं आयी बिरखा
निसरग्यो सगळो बगत
अबै छलीज्या है सगळा ताळ-तळाब
हुवो भलांई अबै आं मांय
छपक-छपक।

सुपना नीं आवै इण बेटैम री बिरखा सूं
नींद री टैम नींद घुळै कोनी
सुपना बणै कोनी
अेकली पड़ी बरसै आ बेटैम री बिरखा
खेत भरै कोनी।

बिरखा रो धरम हुवै बरसणो
टैमसर बरसणो
नीं तो किरसा सूं रळै कोनी
खेत भरै कोनी
बिना टैम री बिरखा बरस्यां
सुपना आवै कोनी।
</poem>
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