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पतझड़ / राजेन्द्र जोशी

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|संग्रह=कद आवैला खरूंट ! / राजेन्द्र जोशी
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<poem>
पतझड़
निरवाळी बगत हुवै
पतझड़ हुयां
बसंत री मनवार हुवै
बसंत मुळकण लागै
पतझड़ पछै।

बसंत जाणै
पतझड़ बिना
कुण करै
सुआगत बसंत रो
बसंत नै आवण री ओळूं
पतझड़ सूं आवै।

पतझड़ अर बसंत री जुगलबंदी
भेळी है
बसंत रै आवण तांई।

मुळकण लागै बसंत
पतझड़ हुवण सूं
फकत बसंत, बसंत, बसंत।
</poem>
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