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|संग्रह=कद आवैला खरूंट ! / राजेन्द्र जोशी
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<poem>
सबद बेचण री जुगत मांय
दाऊ पनवाड़ी री दुकान माथै
कविराज आपरै निरवाळै सबदां सागै
सिंझ्या पैली जाय जम्या।

आज खचाखच भर्यो है
दाऊ री दुकान रो पाटो कवियां सूं
नूंवा लिखारा कवि बणण सारू
घुस्यां जावै है दुकान रै मांयनै।

बाज रैयो है भीम रो तुणतुणियो
'मजा करो महाराज थांरी पांचूं घी में है' अर
'रोटी नाम सत है, खावै जो मुगत है'
छाय रैया है सदीक अर हरीश।

तांगा-टैक्सियां भाग रैयी है कोटगेट कानी
भीड़ धक्का-मुक्की करै है
कठैई मिळ जावै ठौड़ ऊभो रैवण नै।

अठै सबद निरवाळा नीं है
आं सबदां भेळै रमै है बीकाणै रा मिनख
आपरो कवि अर आपरा गीत
सुणणा चावै, दाऊ री दुकान
नीं बिक्या सबद उण कविराज रा
जिको बेचणो चावतो निरवाळा सबद।
</poem>
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