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|संग्रह=आंख ई समझै / लक्ष्मीनारायण रंगा
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<poem>
समंदर है
डबडबाई आंख
धरती मा री

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जूनां रै जोसी!
कैनैं मिल्या है पिव,
मरिया बिनां,

{{KKBR}}
मरियोड़ा तो
हुय जावै आजाद
जीवै गुलाम

</poem>
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