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गीत / कुमार मुकुल

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|रचनाकार=कुमार मुकुल
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जाने जीवन में क्यों हैं जंजाल इतने
 दूर हो तुझसे तुझ से बीतेंगे साल कितने 
काम हैं जितने उतने इलजाम भी हैं
 
फूटती सुबहें हैं तो ढलती शाम भी है
 भर छाती धंसकर धँसकर जीता हूं हूँ जीवन 
कभी ये नियति देती उछाल भी हैं
 
जाने...
 
फैज इधर हैं उधर खय्याम भी हैं
 
लहरों पर पीठ टेके होता आराम भी है
 खट-खट कर कैसे राह बनाता हूं हूँ थोड़ी जानता हूं हूँ आगे बैठा भूचाल भी है 
जाने...
  '''(रचनाकाल :दिल्ली,971997)
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