भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

छलक न जाना / रंजन कुमार झा

13 bytes removed, 14:03, 1 अगस्त 2018
गालों पर तुम छलक न जाना
अश्रु नहीं, ये गंगाजल है, समझ रहे तुम आँसू जिनको पूजन हित ये खिले कमल हैं वो सबके सब गंगाजल हैँदिलहृद-मंदिर के देवों के सिर
चढ़ने वाले नीर धवल हैं
इसे भाव की स्याही में भर
Mover, Protect, Reupload, Uploader
6,574
edits