भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

बंद दरवाज्जा / कविता भट्ट

69 bytes removed, 18:24, 8 अगस्त 2018
खिड़कियाँ बी हैं उदास
खुलण की नहीं बची आस,
पर सच कहूँ ! बेर बेरा नी क्यूंइन सार्याँ नै नै है
हवा पै बिस्वास्।
लाग्गै है सुणैगी सिसकियाँ
'''( हरियाणवी में अनुवाद: डॉ.उषा लाल )
'''
[''';{कुछ वर्ण फ , भ ,ध,फ ,आदि कुछ वर्ण गहरे गहारे काले रंग में लिखे हैं'''. उच्चारण करते समय यहाँ ताकि विशेष प्रकार लहजे में उनसे बने शब्दों का बलाघात( लहज़ा) होता है , जो भाषा की विशिष्ट पहचान है उच्चारण किया जा सके .]</poem>