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खुलण की नहीं बची आस,
पर सच कहूँ ! बेरा नी क्यूं
इन सार्याँ नै नै है
हवा पै बिस्वास्।
लाग्गै है सुणैगी सिसकियाँ
'''( हरियाणवी में अनुवाद: डॉ.उषा लाल )
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