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ललकारता है सुबह का सूरज…लोग पूछते हैंकि दिन की सड़क पर क्या होना चाहती है बड़े होकर आज कितने कदम चलोगे अपने सपने की दिशा में?और सच बात तो यह कहती हैमुनियाकि 90% दिन तो मुँह“माँ!”“माँ होना” कोई लक्ष्य नहीं”…कहते हैं लोग…समझाने से भी नहीं समझती।माँ, पेट और हाथों सालों से गीली चुन्नीझटकार कर एकाएक डाल देती है सुखाने तार पर!मुनिया के नाम ही हो जाता बाल सँवारती है,प्यार सेदिमाग और सपनों ज्ञान का नम्बर ही कब आता तेल खूब ठोंकती है?सिर मेंउस बचे 10% और गूँथ देती है ढ़ेरों सीखें बालों में से 8% जाता फिर बाँध देती है घर के उन्हें प्यार और परिवार क्षमा के नाम,बचे दो प्रतिशत में रिबनों से एक प्रतिशत!मैं ’होम-मैनेजमेंट” के अनेक गुण अपनी थकावट को सहलातेअपने शरीर मुनिया के दर्दों की गुफाओं में घूमतेनिकाल कपड़ों पर काढ़ देती हूँहै माँ!और बचे १ प्रतिशत को देती हूँरसोई की “इन्वेंटोरी” करते हुए अपने सपने को….!सिखाती हैमुस्कुरा कर दिन ख़त्म “कॉस्ट इफैक्टिव” होने से पहले के गुर!“इन्वैस्टमेंट रिसर्च” के सारे पन्ने खोल देती है माँ उसके आगेऔर दिन को बताती हूँ;है “रिलेशन्स मैनेजमेंट” मेंआत्मीयता, मुस्कुराहट, धैर्य, और “प्राब्लम सौल्विंग” इस तरह मैं हर रोज़ अपने सपनों की सारी “सॉफ्ट-स्किल्स”।तरफ एक प्रतिशत आती हूँ-एक कर सिखाती है अच्छे “कुक” होने की विधा,रातउसके “पीपल मैनेजमेंट” से खुश हैं घर के नौकर-चाकर!माँ, तारों धीरे-धीरेबस्ते में किताबों के साथ मिल कर अपनी जीत का -साथ रखती जाती है जश्न मनाती हूँ!अपने को हिज्जे-हिज्जे!…. बहुत दिनों बाद,दफ्तर जाते हुये सोचती है मुनिया,वाकई,पिता बनने से कहीं अधिक कठिन है, माँ बनना।
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