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रेगमाल / जितेन्द्र सोनी

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जिंदगी
जब रेगमाल हो जाती है
तो ख्याल खुरदुरे,
सवाल कुंद
और इरादे बुलंद हो जाते हैं
इस बुलंदी तक
कद करने में
पसीना बहाने से लेकर
जिस्म बेचने
या ज़मीर रहन रखने तक
मजबूरियां,
जरूरतें
और हसरतें
सीखा जाती हैं
बहुत कुछ ।
रंगदार होने से
रेगमाल हो जाना
कई बार अच्छा होता है।
</poem>