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Kavita Kosh से
मैंने अपना दोस्त मान रखा था।
मैं अपने दोस्त का सर कांटूकाटूँ
या उसकी छाया को
दियासलाई से जला दूं।दूँ।
</poem>
(पटना में पांच जनवरी 1987 को खादी ग्राम जाते हुए रास्ते में लिखी विश्वनाथ प्रताप सिंह की एक कविता, यह वही समय था जब वे कांग्रेस के भीतर रहकर अपनी लड़ाई लड रहे थे।)