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20:49, 20 अगस्त 2018
आपसे 1प्रीति, हाँ प्रीति दुनिया में सुख की एक ही रीति ।2आप से मिलेतो लगा क्या मिलनाकिसी और से !3ढूँढ़ता रहा खुद को दिन रात ढूँढ़ न पाया !4छोटा कर देरातों की लम्बाई भी गहरी नींद ।5 छीन ही लिया नदी का नदीपन प्यासे बाँधों ने ।6रिश्तों से ज्यादा तनाव बसते है घरों में अब ! 7युग-युगों से सोए पड़े पहाड़ जागेंगे कब ?8 गाँवों से लाता शुद्ध आक्सीजन भी वश न चला ।9भीड़ तो बढ़ी विरल हो चले हैं रिश्ते परंतु ।10रात होते ही गोलबन्द हो गये चाँद-सितारे ।11घिर गया है विषैली लताओं से जीवन- वृक्ष ।12बुझते हुए पल भर को सही लड़ी थी लौ भी ।13मैं नहीं हूँ मैंतुम भी कहाँ तुम सब मुखौटॆ ।
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