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|रचनाकार=ललित कुमार
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<poem>
'''मेरा भी घर बसज्यागा बेबे, तूं बात मानले मेरी,'''
'''उस दासी नै दे घाल महल मैं, मतन्या लावै देरी || टेक ||'''

यो शीशे कैसा गात परी का, नर्म जिगर नै छोलै,
भुजंग ज्यूँ बल खाती चालै, ओली-सोली डोलैं,
माणस नै दे मार पदमनी, जब मीठी-मीठी बोलै,
सूरज कैसा चमकै चेहरा, या घुंघट गाती खोलै,
काली घटा चढ़ी चाँद पै, न्यूं होरी रात अँधेरी ||

कंचन कैसी काया माया, मन मेरे मै खटकै सै,
छाती मै घा करै नजाकत, जब जुल्फां नै झटकै सै,
खुल्ले केश महेश की ज्यूँ, ये लटका राखे वट कै सै,
डोळण की पड़ै झोल गात मै, पोरी-पोरी मटकै सै,
खिली कमल कैसी कली कीचड़ मै, यो भोंरा काटै घेरी ||

कनक-कामनी नूर-दामंनी, थी चमक गात मै,
या सर्पा कैसी मणि चमकती, बण की रात मै,
मेरी शादी की बात चलादे, तूं उसके साथ मै,
मेरे सांसा की डोर सुदेष्णा, आरी तेरे हाथ मै,
दम घुटता आवै सै, मेरा जी मुठी मै लेरी ||

मैं वेद-विधि तै ब्याह करवाल्यु, जो दुनिया की रीत बेबे,
बान बिठाकै तेल चढ़ादयों, थाम गँवा लियो गीत बेबे,
इसकी गेल्या शादी होज्या, जग मै हो मेरी जीत बेबे,
दुर्गा माँ का ध्यान धरै, ईब आठो पहर ललित बेबे,
गुरु ज्ञान बिन ना कटै चौरासी, होज्या डूबा-ढेरी ||
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