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<poem>
'''मनै महल-हवेली का के करणा, मै मदिरा लेवण आई,'''
'''इस सोमरस की शौक़ीन घणी, वा तेरी बहाण माँ जाई || टेक ||'''

पिछले जन्म के पुन्न कर्म से, राज का घर हो सै,
दींन-दुखियों पै दया करणिया, भूप ताज का सर हो सै,
लागै भूख पापी पेट, नाज का भर हो सै,
प्यारी प्रजा खातिर राजा, घंणी ल्हाज का नर हो सै,
हाम दुःख-दर्दा मै आरे थारै, म्हारै छारी या करड़ाई ||

उच्च वर्ण की सेवा खातिर, ये हो सै दासी-दास,
आठो पहर टहल करै, रहते हरदम पास,
दुष्कर्म का गलत नतीजा, तूं पढ़ लिए इतिहास,
दमयंती पै होकै आशिक, व्याध का भी होया नाश,
महाभिष नै भी देवनदी कारण, मिली मृतलोक की राही ||

मत करै अन्याय भाई, कहूँ जोडके हाथ मै,
यो सती बीर का धर्म बिगड़ज्या, दुःख होज्या गात मै,
जाण बुझकै कुबध कमावै, मत गेर पतंगा पात मै,
नर्क बीच मै बणै बसेरा, यो धोखा होज्या तेरे साथ,
वै भूप बणे भुजंग, जिननै पर-त्रिया पै नीत डिगाई ||

जो आठ पहर तर-तर करते, वे सांस घटाले बारा,
चौसठ घड़ी चलते रहते, घटज्या पुरे अठारा,
तीस सांस घटै नींद नशे मै, चालै ना कोए चारा,
चौसठ घटै भोग करे तै, यो बहवै शरीर का पारा,
कहै ललित ये कारण मृत्यु के, तू सोच-समझले भाई ||
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