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<poem>
'''तूं धर्मराज तुल न्याकारी राजा, क्यूँ अनरीति की ठाणै,'''
'''म्हारै समय का चक्कर चढ्या शीश पै, हम नौकर घरां बिराणै ||टेक||'''
पर-त्रिया पर-धन चाहवैणियां, नरक बीच मै जा सै,
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