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|रचनाकार=ललित कुमार (हरियाणवी कवि)
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<poem>
'''महाराणी कै आश लागरी, धर्म-कर्म मै टेकी नीत,'''
'''वा विप्र जिमावै मंदिर जावै, त्रिलोकी के गावै गीत || टेक ||'''

माया राणी अपने पति की, आकै बंधावण लागी धीर,
उस मालिक की मेहर फिरी, माया स्वर्गलोक मै होग्या सीर,
उसका जीवन सफल बताया, जिसके पितरा नै मिलज्या नीर,
पुत्र बिना पिया मुक्ति कोन्या, न्यूं कहते आवै संत-फ़कीर,
पितृ-संतान का हो जन्म एक दिन, या दुनिया की रीत ||

पुत्र बिन्या मात-पिता की, या लाख चौरासी जेल कहै,
पिता बाती रूप बताया, पुत्र उसका तेल कहै,
हर जिव नै हो आश अंश की, जिसको वंश बेल कहै,
पुत्र पिता नै पार तारदे, न्यूं पितृलोक मै मेल कहै,
म्हारा सुख का समय आया पिया, दुःख का लिया बीत ||

कहै पुत्र पिता नै मेरे पिया, सुरपुर कैसा धाम करै,
वंश बेल चालज्या पूत तै, जग मै ऊँचा नाम करै,
आठो पहर रहै आज्ञा मै, वो सेवा सुबह-शाम करै,
या प्रजा की मेहर जै करै राजा, तो राजा की खुद राम करै,
यो श्री हरी तनै पार तारदे, तेरी होज्या जग मै जीत ||

गऊ-ब्राहमण सतगुरु सेवा बिन, रहै भीतरले मै काला,
सतगुरु सेवा तै मेरे पिया, मिलै समदर्शी सा पाला,
चौरासी का फंद कटै, जो रटै राम की माला,
हामनै पिया राम बराबर, गुरु जगदीश बुवाणी आला,
अपणे गुरु की सेवा करकै, वो होज्यागा पार ललित ||
</poem>
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