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|रचनाकार=ललित कुमार (हरियाणवी कवि)
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<poem>
'''सब बणी-बणी के यार, मनै मत भेजै मिश्राणी,'''
'''भर्गु वंश ब्रह्मा कुल का, या होज्या मोटी हाणी || टेक ||'''

नीर नमी बिन सुणले प्यारी, अन्न वस्तु ना जामण की,
किसे इज्जतदार नै मालुम हो सै, या ल्हाज-आबरू दामण की,
कोरा काळ ल्यूं चाले तै, रुत बिगड़ज्या सामण की,
या दो धेल्ले की इज्जत होज्या, मांगण तै ब्राह्मण की,
अपणे पति नै आप सतावै, क्यूँ पी री बिन छाणी ||

मांगे तै घटै मान मेरा, म्हारा इज्जत भ्रम भरोटा सै,
यो लक्ष्मी गेल्या बैर पूरणा, इक्कीस पीढ़ी का टोटा सै,
मेरा दादा कै लग्या था श्राप, न्यू समय म्हारा खोटा सै,
कोए कर्म-धर्म ना आगै आया, काया मै दुःख मोटा सै,
मेरे जाण तै बट्टा लागै, या होज्या अमर कहानी ||

लिख राखी कर्मा मै हाणी, पड़ै मेरी पार कोन्या,
जब समय का चक्कर शीश पै, कोए किसे का यार कोन्या,
वक्त पै साथ छोडदे छाया, साथ रहै परिवार कोन्या,
भीड़ पड़ी मै आँख बदलज्या, वा पतिभरता नार कोन्या,
जाया तै मेरी जात बिगड़ज्या, या कुछ ना आणी-जाणी ||

सब्र करे तै सुख हो सै, या कहती दुनिया सारी,
चिन्तया चित चरण लागज्या, दुःख होज्या घणा भारी,
सुशीला मत फंस लालच मै, तेरी गैल बणै लाचारी,
ललित बुवाणी आले नै, न्यू सोचके या बात विचारी,
लेख मै लिख्या देखके, भई चाहिए बात बणाणी ||
</poem>
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