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|रचनाकार=दुष्यंत कुमार
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[[Category:ग़ज़ल]]

होने लगी है जिस्म में जुंबिश तो देखिये

इस पर कटे परिंदे की कोशिश तो देखिये


गूँगे निकल पड़े हैं, ज़ुबाँ की तलाश में

सरकार के ख़िलाफ़ ये साज़िश तो देखिये


बरसात आ गई तो दरकने लगी ज़मीन

सूखा मचा रही है ये बारिश तो देखिये


उनकी अपील है कि उन्हें हम मदद करें

चाकू की पसलियों से गुज़ारिश तो देखिये


जिसने नज़र उठाई वही शख़्स गुम हुआ

इस जिस्म के तिलिस्म की बंदिश तो देखिये