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योद्धा / रेवंत दान बारहठ

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जूझना झेलना और सहना
जाने क्या-क्या लिखा था
जीवन के इस समर में
लड़ना ही बदा था
पग-पग पर थीं परीक्षाएँ
बड़ी मुश्किल थी राहें
हर कदम पर कड़ी धूप थी
न रुका न झुका,
न टूटा न बँटा।
काल ने लिखी क्रूरता से
नियति की अज़ब कहानी
अक्षर-अक्षर अबखाई
पृष्ठ-पृष्ठ था पीड़ादायी
जो बाँचे उसी की रूह काँपे
पर उसी से गुजरना था
न हारा,न उदास हुआ
न रोया,न रोने दिया।

कई बार गिरा,गिरकर उठा
और ख़ुद को समझाया
है कौन यहाँ जो गिरा नहीं
संताप संकटों से घिरा नहीं
संघर्ष की लौ को जलाया
वही मंज़िलों के क़रीब आया
जो झुका नहीं,जो रुका नहीं
जो टूटा नहीं,जो बँटा नहीं
जीवन समर में वही सच्चा योद्धा कहलाया।
​​

</poem>
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