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जीवन समर / रेवंत दान बारहठ

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<poem>
यह समय है
जीवन समय के प्रयाण का
अस्तित्व पर उठती हुई अंगुलियाँ
चहुँ ओर चीखती हुई चुनौतियाँ
अगर सुन सको तो सुनो!

माना कि तुम सर्वाधिक योग्य हो
पर अपाहिज अयोग्यताएँ
तुम्हें ललकारे और ताने मारे
तो यह सही समय होता है
उनको ज़वाब देने का
कोई फ़र्क नहीं पड़ेगा
तुम्हारे उठने से
पर हाँ ! ध्यान रखना
मायूस कर दोगे कई हक़दारों को
कुंठित कर दोगे कई ऊर्जाओं को
पुरूषार्थ की कसौटी पर
युग जब भी न्याय करेगा
अकर्मण्यता को माफ नहीं करेगा
इससे पहले कि युग तुम्हें धिक्कारे
और गूँजे गगन में अयोग्यों के नारे
इससे पहले कि
तुम पर अट्टहास करे
बैसाखियों वाले सहारे
तुम्हें उठना होगा
तुम्हें चलना होगा
तुम्हें जूझना होगा
तुम्हें जितना होगा
विजय की जयमाला
कर रही है इंतज़ार तुम्हारा।

जीवन समर की रणभेरियाँ
कायरों का नहीं
योद्धाओं का स्वागत करती है।
​​

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