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{{KKRachna
|रचनाकार=निशाकर
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|संग्रह=ककबा करैए प्रेम / निशाकर
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<poem>
हमरा अंदर बहैत अछि
एकटा गंगा
पुलिसक बढ़ि जाइत छैक
आमदनी।
</poem>
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