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|रचनाकार=प्रमिल चन्द्र सरीन 'अंजान'
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|संग्रह=तुमने कहा था / प्रमिल चन्द्र सरीन 'अंजान'
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<poem>
तू इसे माने न माने बात है मानी हुई
चांद-सा टुकड़ा हुआ या तेरी पेशानी हुई

खाके-कूए-यार थी अक्सीर सौ अक्सीर की
क्यों तलाशे कीमिया की हमसे नादानी हुई

क्या सितारों की चमक और क्या चिरागों की ज़िया
चांद की भी उनके आगे मांद ताबानी हुई

नींद रातों की हुई गायब सुकूं जाता रहा
मेरे दिल की इश्क़ में कुछ ऐसे वीरानी हुई

देख कर मैं उनकी सूरत देखता ही रह गया
सनअते दस्ते ख़ुदा पर मुझको हैरानी हुई

ग़ैर हरगिज़ पा न सकता बार तेरी बज़्म में
पर मुझे हासिल न तेरे दर की दरबानी हुई

क्या कहें 'अंजान' हम तेगे-निगाहे यार को
पानी उसके सामने तेगे-सफ़ाहानी हुई।
</poem>
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