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|रचनाकार=प्रमिल चन्द्र सरीन 'अंजान'
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|संग्रह=तुमने कहा था / प्रमिल चन्द्र सरीन 'अंजान'
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<poem>
नज़रें ही मिली हैं न कोई बात हुई है
यूँ उनसे सरे-राह मुलाक़ात हुई है

अफ़सोस सद अफ़सोस न तुम थे न सबू था
होने को तो इस बार भी बरसात हुई है

इस बार भी वो वादे पे अपने नहीं आये
जिस बात का डर था मुझे वो बात हुई है

जिस बात का है मेरे मुक़द्दर से तअल्लुक़
उस बात पे कहते हैं कि क्या बात हुई है

कुछ ख़ौफ़ नहीं मुझको जो रूठा है ज़माना
क्यों आप हैं रूठे हुए क्या बात हुई है।
</poem>
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