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|रचनाकार=प्रमिल चन्द्र सरीन 'अंजान'
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|संग्रह=तुमने कहा था / प्रमिल चन्द्र सरीन 'अंजान'
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<poem>
इससे पहले कि हम में तुम हम हो
आरज़ू है कि आखिरी दम हो

अपने वादे पे वो नहीं आये
मौत आये तो बारे-दिल कम हो

लुत्फ आ जाये ख़त के पढ़ने का
कुछ अगर ज़िक्रे रब्ते-बाहम हो

अब नहीं ताब मुझमें जीने की
ज़िन्दगी के चराग़ मद्धम हो

जलवागर है वो बाम पर अपने
क्यों न तारों में रौशनी कम हो

उसको जीने की आस क्या होगी
तेरा ग़म जिसके दिल में पैहम हो।
</poem>
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