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|रचनाकार=प्रमिल चन्द्र सरीन 'अंजान'
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|संग्रह=तुमने कहा था / प्रमिल चन्द्र सरीन 'अंजान'
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<poem>
तुमसे नज़र में मुझको उठाया न जायेगा
मुझसे तुम्हें नज़र से गिराया न जायेगा

ढा तो रहे हैं आप सितम पर सितम हुजूर
ये हाल मेरा आप से देखा न जायेगा

लिल्लाह आप छोड़ के मुझको न जाइये
मुझसे ग़मे-फ़िराक़ में तड़पा न जायेगा

कुछ तो करेंगे आप को पाने की हम सबील
यूँ हाथ रख के हाथ पे बैठा न जायेगा

अंजान क्या ख़बर थी महब्बत में एक दिन
हाले-दिले-तबाह पे रोया न जायेगा।
</poem>
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