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{{KKRachna
|रचनाकार=प्रमिल चन्द्र सरीन 'अंजान'
|अनुवादक=
|संग्रह=तुमने कहा था / प्रमिल चन्द्र सरीन 'अंजान'
}}
{{KKCatGhazal}}
<poem>
तुमने हर इक गाम पे सदमा नया दिया
दिल को फ़िराक़ जान को कहरे बना दिया
जिसने हमारी याद को दिल से मिटा दिया
हमने उसी की याद में दिल को मिटा दिया
अब आप इसको शौक़ से कदमों से रोंदिये
हमने हुजूर आपको दिल दे दिया, दिया
उस रौशनी से राह चिरागां नहीं हुई
जिस रौशनी के वास्ते दिल को जला दिया
सदमे हैं सद हज़ार मेरी जान के लिए
बुझता नहीं है फिर भी मेरी ज़ीस्त का दिया
हम हो गये हैं बेख़ुदी में खुद से बेख़बर
ये क्या निगाहे-नाज़ ने हमको पिला दिया।
</poem>
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|अनुवादक=
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<poem>
तुमने हर इक गाम पे सदमा नया दिया
दिल को फ़िराक़ जान को कहरे बना दिया
जिसने हमारी याद को दिल से मिटा दिया
हमने उसी की याद में दिल को मिटा दिया
अब आप इसको शौक़ से कदमों से रोंदिये
हमने हुजूर आपको दिल दे दिया, दिया
उस रौशनी से राह चिरागां नहीं हुई
जिस रौशनी के वास्ते दिल को जला दिया
सदमे हैं सद हज़ार मेरी जान के लिए
बुझता नहीं है फिर भी मेरी ज़ीस्त का दिया
हम हो गये हैं बेख़ुदी में खुद से बेख़बर
ये क्या निगाहे-नाज़ ने हमको पिला दिया।
</poem>