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|रचनाकार=प्रमिल चन्द्र सरीन 'अंजान'
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|संग्रह=तुमने कहा था / प्रमिल चन्द्र सरीन 'अंजान'
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<poem>
* कपड़ा नहीं तो रात का ये पैरहन तो है
सद शुक्र मेरी लाश पे कोई कफ़न तो है

* जो टूट गया सो टूट गया उस ख़्वाब को ऐ दिल याद न कर
तू पी ले अपने अश्क़ों को यूँ बर्बाद न कर

* मैंने चाहा भर था उनको और लिया था नामे वफ़ा
बस इतने भर में ही मुझपर टूट पड़ा है कुहरे बला

* सुकूं से सो सकेंगे हम अगर रुके किसी तरह
रगों में दौड़ खून की ये धड़कनों का सिलसिला

* हर एक सांस दे रही है दिल की आग को हवा
मैं सोचता हूँ फिर भी क्यों ये दिल अभी नहीं जला

* मिलने के दिन बीत चुके हैं आई हैं फिर हिज्र की रातें
भूल भी जा अब ऐ मेरे दिल बीते हुए दिन गुज़री हुई रातें

* किसी को टे देखा है किसी को डूबता पाया
महब्बत करने वालों को ग़मों में मुब्तला पाया

* अजब क्या उस की इक ठोकर से ही मैं जी उठूं फिर से
मुझे यारो सुपुर्दे ख़ाक करना कूए जानां में

* आन जान और शान की ख़ातिर अपनी जान लुटाने वाले
लाल बहुत हैं देश में लेकिन याद रहेंगे लाल बहादुर

* जिस ने दर्द की दौलत दी है रंज की नेमत की है अता
उस शोख़ के वो ढंग वो तेवर वो तरीके

* देखा है अभी तक तो जब भी पाया कि अंधेरा होता है
देखें कब अपनी किस्मत की रातों का सवेरा होता है

* इके ख़्वाब मैंने देखा था फ़सले बहार में
फिर उसके बाद उम्र कटी इंतिज़ार में

* एक उम्मीद दिल में रहती है
बात जीने की हमसे कहती है

* इशक़ के नाम पे जो मिलते है
ज़ख़्म वो ज़ीस्त हंस के सहती है

• सच की गंगा में पाप धुलते हैं
जब वो इंसां के दिल में बहती है

* ऐ काश तुझको दोस्त ये होती कहीं खबर
खाये हैं सब फ़रेब तेरे ऐतबार में

* तेरे हजीं को नींद न आई तमाम रात
करवट बदल बदल के बिताई तमाम रात

* क्या पूछते हो कैसे बिताई शबे फ़िराक़
बस दिल था और दर्दे-जुदाई तमाम रात

* आये न तुम जो वादा पे अपने मेरे हबीब
अश्क़ों से दिल की आग बुझाई तमाम रात

* बशर सदमे जवानी में खुशी से झेल जाता है
बुढ़ापे में मगर सदमा बशर को पल जाता है

* शहादत याद रहती है हमेशा उसकी दुनिया को
वतन के वास्ते हंस कर जो जां पर खेल जाता है

* जो सीधी राह चलता है पहुंच जाता है मंज़िल पर
जो उलटे काम करता है वो सीधे जेल जाता है

* हम ये कैसे सह सकते थे दर दर हो रुसवाई तेरी
दर्द के मेरे दिल तो रोया आंख से आंसू बह न सका।

* जिस में कोई बशर नहीं होता
वो मकां कोई घर नहीं होता

* बआत पूछो न दर्दे-फ़ुर्कत का
ये इधर है उधर नहीं होता

* आह सब को लहू रुलाती है
असर उन को मगर नहीं होता

* गो पुराने वक़्त का अंदाज़ा हूँ
तीरगी है बहुत अंधेरा है

* मौत ने तुमको मुझसे छीना
मुश्किल हो गया मेरा जीना

* एके तूफां ने इसको तोड़ दिया
कितना कमज़ोर ये सफ़ीना है।

* तू एक पल के वास्ते आ कर चला गया
फिर उसके बाद उम्र कटी इंतिज़ार में

* मेरे साथ कुछ पल बिताकर तो देखो
मुझे पास अपने बुलाकर तो देखो

* लुट गई दौलते-सुकूने दिल
किस सितमगर को चाहता हूँ मैं

* अश्क़ आंखों से बह के निकले हैं
मेरे दिल का ग़ुबार निकला है

* ज़ख़्म गहरा है भर नहीं सकता
तीर सीने के पार निकला है

* जिसने मारा था पीठ में खंज़र
वो भी अपना ही यार होता है

* तरे ज़ुल्मों सितम के बदले में
मेरे दिल से तो प्यार होता है

* नाम तेरा बसा है सांसों में
दिल से ये बार बार निकला है।

* दिल को अपने संभाल कर रखिये
हर कदम देख भाल कर रखिये

* सामना उन से होने वाला है
हाथ पर दिल निकाल कर रखिये

* दिल बहलता है चैन मिलता है
हाथ पर हाथ डाल कर रखिये।

</poem>
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