भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
'{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=प्रमिल चन्द्र सरीन 'अंजान' |अनुवा...' के साथ नया पृष्ठ बनाया
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=प्रमिल चन्द्र सरीन 'अंजान'
|अनुवादक=
|संग्रह=तुमने कहा था / प्रमिल चन्द्र सरीन 'अंजान'
}}
<poem>
* कपड़ा नहीं तो रात का ये पैरहन तो है
सद शुक्र मेरी लाश पे कोई कफ़न तो है
* जो टूट गया सो टूट गया उस ख़्वाब को ऐ दिल याद न कर
तू पी ले अपने अश्क़ों को यूँ बर्बाद न कर
* मैंने चाहा भर था उनको और लिया था नामे वफ़ा
बस इतने भर में ही मुझपर टूट पड़ा है कुहरे बला
* सुकूं से सो सकेंगे हम अगर रुके किसी तरह
रगों में दौड़ खून की ये धड़कनों का सिलसिला
* हर एक सांस दे रही है दिल की आग को हवा
मैं सोचता हूँ फिर भी क्यों ये दिल अभी नहीं जला
* मिलने के दिन बीत चुके हैं आई हैं फिर हिज्र की रातें
भूल भी जा अब ऐ मेरे दिल बीते हुए दिन गुज़री हुई रातें
* किसी को टे देखा है किसी को डूबता पाया
महब्बत करने वालों को ग़मों में मुब्तला पाया
* अजब क्या उस की इक ठोकर से ही मैं जी उठूं फिर से
मुझे यारो सुपुर्दे ख़ाक करना कूए जानां में
* आन जान और शान की ख़ातिर अपनी जान लुटाने वाले
लाल बहुत हैं देश में लेकिन याद रहेंगे लाल बहादुर
* जिस ने दर्द की दौलत दी है रंज की नेमत की है अता
उस शोख़ के वो ढंग वो तेवर वो तरीके
* देखा है अभी तक तो जब भी पाया कि अंधेरा होता है
देखें कब अपनी किस्मत की रातों का सवेरा होता है
* इके ख़्वाब मैंने देखा था फ़सले बहार में
फिर उसके बाद उम्र कटी इंतिज़ार में
* एक उम्मीद दिल में रहती है
बात जीने की हमसे कहती है
* इशक़ के नाम पे जो मिलते है
ज़ख़्म वो ज़ीस्त हंस के सहती है
• सच की गंगा में पाप धुलते हैं
जब वो इंसां के दिल में बहती है
* ऐ काश तुझको दोस्त ये होती कहीं खबर
खाये हैं सब फ़रेब तेरे ऐतबार में
* तेरे हजीं को नींद न आई तमाम रात
करवट बदल बदल के बिताई तमाम रात
* क्या पूछते हो कैसे बिताई शबे फ़िराक़
बस दिल था और दर्दे-जुदाई तमाम रात
* आये न तुम जो वादा पे अपने मेरे हबीब
अश्क़ों से दिल की आग बुझाई तमाम रात
* बशर सदमे जवानी में खुशी से झेल जाता है
बुढ़ापे में मगर सदमा बशर को पल जाता है
* शहादत याद रहती है हमेशा उसकी दुनिया को
वतन के वास्ते हंस कर जो जां पर खेल जाता है
* जो सीधी राह चलता है पहुंच जाता है मंज़िल पर
जो उलटे काम करता है वो सीधे जेल जाता है
* हम ये कैसे सह सकते थे दर दर हो रुसवाई तेरी
दर्द के मेरे दिल तो रोया आंख से आंसू बह न सका।
* जिस में कोई बशर नहीं होता
वो मकां कोई घर नहीं होता
* बआत पूछो न दर्दे-फ़ुर्कत का
ये इधर है उधर नहीं होता
* आह सब को लहू रुलाती है
असर उन को मगर नहीं होता
* गो पुराने वक़्त का अंदाज़ा हूँ
तीरगी है बहुत अंधेरा है
* मौत ने तुमको मुझसे छीना
मुश्किल हो गया मेरा जीना
* एके तूफां ने इसको तोड़ दिया
कितना कमज़ोर ये सफ़ीना है।
* तू एक पल के वास्ते आ कर चला गया
फिर उसके बाद उम्र कटी इंतिज़ार में
* मेरे साथ कुछ पल बिताकर तो देखो
मुझे पास अपने बुलाकर तो देखो
* लुट गई दौलते-सुकूने दिल
किस सितमगर को चाहता हूँ मैं
* अश्क़ आंखों से बह के निकले हैं
मेरे दिल का ग़ुबार निकला है
* ज़ख़्म गहरा है भर नहीं सकता
तीर सीने के पार निकला है
* जिसने मारा था पीठ में खंज़र
वो भी अपना ही यार होता है
* तरे ज़ुल्मों सितम के बदले में
मेरे दिल से तो प्यार होता है
* नाम तेरा बसा है सांसों में
दिल से ये बार बार निकला है।
* दिल को अपने संभाल कर रखिये
हर कदम देख भाल कर रखिये
* सामना उन से होने वाला है
हाथ पर दिल निकाल कर रखिये
* दिल बहलता है चैन मिलता है
हाथ पर हाथ डाल कर रखिये।
</poem>
{{KKRachna
|रचनाकार=प्रमिल चन्द्र सरीन 'अंजान'
|अनुवादक=
|संग्रह=तुमने कहा था / प्रमिल चन्द्र सरीन 'अंजान'
}}
<poem>
* कपड़ा नहीं तो रात का ये पैरहन तो है
सद शुक्र मेरी लाश पे कोई कफ़न तो है
* जो टूट गया सो टूट गया उस ख़्वाब को ऐ दिल याद न कर
तू पी ले अपने अश्क़ों को यूँ बर्बाद न कर
* मैंने चाहा भर था उनको और लिया था नामे वफ़ा
बस इतने भर में ही मुझपर टूट पड़ा है कुहरे बला
* सुकूं से सो सकेंगे हम अगर रुके किसी तरह
रगों में दौड़ खून की ये धड़कनों का सिलसिला
* हर एक सांस दे रही है दिल की आग को हवा
मैं सोचता हूँ फिर भी क्यों ये दिल अभी नहीं जला
* मिलने के दिन बीत चुके हैं आई हैं फिर हिज्र की रातें
भूल भी जा अब ऐ मेरे दिल बीते हुए दिन गुज़री हुई रातें
* किसी को टे देखा है किसी को डूबता पाया
महब्बत करने वालों को ग़मों में मुब्तला पाया
* अजब क्या उस की इक ठोकर से ही मैं जी उठूं फिर से
मुझे यारो सुपुर्दे ख़ाक करना कूए जानां में
* आन जान और शान की ख़ातिर अपनी जान लुटाने वाले
लाल बहुत हैं देश में लेकिन याद रहेंगे लाल बहादुर
* जिस ने दर्द की दौलत दी है रंज की नेमत की है अता
उस शोख़ के वो ढंग वो तेवर वो तरीके
* देखा है अभी तक तो जब भी पाया कि अंधेरा होता है
देखें कब अपनी किस्मत की रातों का सवेरा होता है
* इके ख़्वाब मैंने देखा था फ़सले बहार में
फिर उसके बाद उम्र कटी इंतिज़ार में
* एक उम्मीद दिल में रहती है
बात जीने की हमसे कहती है
* इशक़ के नाम पे जो मिलते है
ज़ख़्म वो ज़ीस्त हंस के सहती है
• सच की गंगा में पाप धुलते हैं
जब वो इंसां के दिल में बहती है
* ऐ काश तुझको दोस्त ये होती कहीं खबर
खाये हैं सब फ़रेब तेरे ऐतबार में
* तेरे हजीं को नींद न आई तमाम रात
करवट बदल बदल के बिताई तमाम रात
* क्या पूछते हो कैसे बिताई शबे फ़िराक़
बस दिल था और दर्दे-जुदाई तमाम रात
* आये न तुम जो वादा पे अपने मेरे हबीब
अश्क़ों से दिल की आग बुझाई तमाम रात
* बशर सदमे जवानी में खुशी से झेल जाता है
बुढ़ापे में मगर सदमा बशर को पल जाता है
* शहादत याद रहती है हमेशा उसकी दुनिया को
वतन के वास्ते हंस कर जो जां पर खेल जाता है
* जो सीधी राह चलता है पहुंच जाता है मंज़िल पर
जो उलटे काम करता है वो सीधे जेल जाता है
* हम ये कैसे सह सकते थे दर दर हो रुसवाई तेरी
दर्द के मेरे दिल तो रोया आंख से आंसू बह न सका।
* जिस में कोई बशर नहीं होता
वो मकां कोई घर नहीं होता
* बआत पूछो न दर्दे-फ़ुर्कत का
ये इधर है उधर नहीं होता
* आह सब को लहू रुलाती है
असर उन को मगर नहीं होता
* गो पुराने वक़्त का अंदाज़ा हूँ
तीरगी है बहुत अंधेरा है
* मौत ने तुमको मुझसे छीना
मुश्किल हो गया मेरा जीना
* एके तूफां ने इसको तोड़ दिया
कितना कमज़ोर ये सफ़ीना है।
* तू एक पल के वास्ते आ कर चला गया
फिर उसके बाद उम्र कटी इंतिज़ार में
* मेरे साथ कुछ पल बिताकर तो देखो
मुझे पास अपने बुलाकर तो देखो
* लुट गई दौलते-सुकूने दिल
किस सितमगर को चाहता हूँ मैं
* अश्क़ आंखों से बह के निकले हैं
मेरे दिल का ग़ुबार निकला है
* ज़ख़्म गहरा है भर नहीं सकता
तीर सीने के पार निकला है
* जिसने मारा था पीठ में खंज़र
वो भी अपना ही यार होता है
* तरे ज़ुल्मों सितम के बदले में
मेरे दिल से तो प्यार होता है
* नाम तेरा बसा है सांसों में
दिल से ये बार बार निकला है।
* दिल को अपने संभाल कर रखिये
हर कदम देख भाल कर रखिये
* सामना उन से होने वाला है
हाथ पर दिल निकाल कर रखिये
* दिल बहलता है चैन मिलता है
हाथ पर हाथ डाल कर रखिये।
</poem>