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|संग्रह=लम्हों का लम्स / मेहर गेरा
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<poem>
पहाड़ बर्फ का आखिर पिघलने वाला है
ज़रा सी देर में मंज़र बदलने वाला है

सितम का कुछ तो नतीजा निकलने वाला है
अब अपनी आग में वो शख्स जलने वाला है

पहुंचने वाला है किरनों का कारवां मुझ तक
मेरी उम्मीद का सूरज निकलने वाला है।

</poem>
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