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|संग्रह=लम्हों का लम्स / मेहर गेरा
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<poem>
रास्ता भर तू मेरे साथ रहा साथ चला
मोजिज़ा ऐसा फ़क़त मेरी नज़र ने देखा

चुपके चुपके तेरी हर याद चुरा ली इसने
वक़्त वो चोर है जिसको न किसी ने देखा

हर तरफ कितनी सलीबें हैं मसीहा कितने
किसको कह सकते हैं हम आज के युग का ईसा

प्यार वो गीत, लबों का जो नहीं है मुहताज
दिल ने ही गाया इसे, और इसे दिल ने सुना

मैंने हर रंग में पहचान लिया है तुझको
तू ही निगहत है तुही फूल सी नाज़ुक सी रिदा

चंद लम्हों के लिए रास जो आई थी मुझे
आज तक ढूंढ रहा हूँ मैं वही आबो-हवा

अब नज़र आती है दिलकश मुझे तस्वीरे-हयात
प्यार ने इसमें मुसव्विर की तरह रंग भरा।
</poem>
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